Meerut News: नवरात्र आज से शुरू हो चुके हैं। आज मां दुर्गा शेर की सवारी छोड़ गज पर सवार होकर आएंगी। इसके अलावा अष्टमी 30 सितंबर और महानवमी 1 अक्तूबर को है।

शारदीय नवरात्रि।
मां शक्ति की आराधना के लिए नवरात्र बहुत ही विशेष अवसर होता है। नवरात्र में की गई पूजा से मां जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्तों का उद्धार करती हैं। नवरात्र में तीन देवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की तथा दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ देवियों की क्रमशः नौ दिन पूजन की जाती है।
इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस के सचिव आचार्य कौशल वत्स ने बताया कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार भक्तों को नवरात्र में 10 दिन देवी पूजन का मौका मिल रहा है।
निर्णय सिंधु का हवाला देते हुए आचार्य कौशल ने बताया कि नवरात्र पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या, धनु तथा कुंभ राशि द्विस्वभाव राशि हैं। इन्हें इसी लग्न में पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। 22 सितंबर दिन सोमवार प्रतिपदा के दिन उत्तराफाल्गुनी व हस्त नक्षत्र और शुक्ल योग होने के कारण यह बहुत शुभ होगा।

शारदीय नवरात्रि
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त…
पहला मुहूर्त: कन्या लग्न व अमृत चौघड़िया सुबह 05:50 से सुबह 07:30 तक।
दूसरा शुभ मुहूर्त: शुभ की चौघड़िया सुबह 09:11 से सुबह 10:42 तक होगा।
तृतीय शुभ मुहूर्त: वृश्चिक स्थिर लग्न सुबह 11:48 से दोपहर 02:05 तक होगा।
विशेष शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:43 से दोपहर 12:38 तक होगा।

शारदीय नवरात्रि 2025
कलश है सुख समृद्धि का प्रतीक
ज्योतिषाचार्य विनोद त्यागी ने बताया कि धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख, समृद्धि, वैभव और मंगल का प्रतीक माना गया है। कालिका पुराण के अनुसार कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं। कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं। दिक्पाल, देवता, सातों दीप, सातों समुद्र, सभी नक्षत्र, ग्रह, कुलपर्वत, गंगादि सभी नदियां, चारों वेद सभी कलश में ही स्थित हैं।
नवरात्र में बोये जाते हैं जौ
नवरात्रि में पूजा स्थल के पास जौ बोने की परंपरा होती है। आचार्य मनीष स्वामी ने बताया इसके पीछे का कारण यह कि जौ को ब्रह्रा स्वरुप और पृथ्वी की पहली फसल माना गया है।

नवरात्रि
माता की सवारी है इस बार हाथी
धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि नवरात्र सोमवार या रविवार से शुरू होते हैं तो मां का वाहन हाथी होता है। यह अधिक वर्षा का संकेत देता है। यदि नवरात्र मंगलवार और शनिवार से शुरू होता है, तो मां का वाहन घोड़ा होता है। यह सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है। इसके अलावा बृहस्पतिवार या शुक्रवार से शुरू होने पर मां दुर्गा डोली में बैठकर आती हैं जो रक्तपात, तांडव, जन धन हानि का संकेत बताया जाता है। वहीं बुधवार के दिन से नवरात्रि की शुरुआत होती है, तो मां नाव पर सवार होकर आती हैं और अपने भक्तों के सारे कष्ट को हर लेती हैं।

पूजा की थाली। सांकेतिक तस्वीर
यह होती है नवरात्र में पूजन सामग्री
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र, जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिट्टी, पात्र में बोने के लिए जौ, घट स्थापना के लिए कलश, कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, रोली, मोली, इत्र, साबुत सुपारी, लौंग, इलायची, पान, दूर्वा, कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के, पंचरत्न, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश ढकने के लिए ढक्कन, ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल, पानी वाला नारियल, नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपड़ा, फूल माला, फल, पंचमेव, अखंड ज्योति।