
फोटो-5- इमरजेंसी गेट पर स्ट्रेचर न मिलने पर गोद में बच्ची को लिए बैठी मां।
उन्नाव। जिला अस्पताल में तीमारदार खुद स्ट्रेचर तलाशते हैं और मरीज को वार्ड तक ले जाते हैं। वार्ड बॉय कहीं डॉक्टर के सहयोगी तो कहीं फाइलों लाने और ले जाने काम में लगे हैं।
जिला अस्पताल में मरीजों की सुविधा के लिए लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके बाद भी मरीज और तीमारदारों की समस्याएं कम नहीं हो रही हैं। बुधवार को जिला अस्पताल के विभिन्न वार्डों में तैनात वार्ड बॉय मरीजों की मदद में नहीं दिखे। कोई इमरजेंसी वार्ड तो ओपीडी में डॉक्टर का सहयोगी के रूप में काम करता दिखा। कई वार्ड बॉय तो कार्यालयों में फाइलों को इधर से उधर पहुंचाने के काम में लगे दिखे। कुछ तो दफ्तर में आराम करते दिखे।
जिला अस्पताल के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि 48 वार्ड बॉय होने चाहिए लेकिन 17 ही तैनात हैं। एक वार्ड बॉय पर कई काम निपटाने की जिम्मेदारी होती है। इससे मरीज के पास अधिक समय नहीं दे पाते हैं।
केस- एक
कन्हईखेड़ा के मेवा लाल (52) ने बताया कि कई दिन से बुखार आने पर रविवार को उन्हें भर्ती किया गया था। बुधवार को डॉक्टर ने जांच कराने की सलाह दी। जांच कराने के लिए स्ट्रेचर से भाई लेकर गए थे।
केस दो-
मैनी खेड़ा के श्यामू की 10 साल की बेटी संगीता की बुधवार को अचानक तबीयत खराब हो गई। मां रामदेई बेटी को लेकर जिला अस्पताल पहुंची। इमरजेंसी वार्ड में भर्ती किया गया। आराम मिलने पर घर जाते वक्त उन्हें अस्पताल के गेट तक स्ट्रेचर नहीं मिला। इस कारण गोद में लेकर बच्ची को गईं।
बोले जिम्मेदार
वार्ड बॉय की कमी है। इसके लिए शासन को लगातार लिखा भी गया है। वार्ड बॉय पर कई अन्य कामों का बोझ रहता है। फिर भी मरीज को भर्ती कराना और जांच कराना उनकी जिम्मेदारी है। मामले की जांच करवाकर कार्रवाई की जाएगी।-डॉ. विवेक गुप्ता, एमएस जिला अस्पताल।

फोटो-5- इमरजेंसी गेट पर स्ट्रेचर न मिलने पर गोद में बच्ची को लिए बैठी मां। संवाद