भाजपा दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए ऐसे अफसरों को अपनी पार्टी में जगह दे रही है। हाल में ही डीजीपी के पद से सेवानिवृत्त विजय कुमार भी भाजपाई हो गए।
नावी समर के दौरान यदि नौकरशाह सियासी दलों का दामन थामते हैं तो सबकी नजरें उन पर टिक जाती हैं। हालिया चुनाव में भी नौकरशाहों का सियासत में आने का सिलसिला जारी है। मंगलवार को सेवानिवृत्त आईपीएस प्रेम प्रकाश के भाजपा में शामिल होने से साफ हो गया कि यह चलन आगे और बढ़ेगा। दरअसल, बीते दो साल में प्रदेश के तीन आईपीएस अधिकारी भाजपा में शामिल हुए हैं। अफसर यदि दलित है तो पार्टी उसे खास तवज्जो दे रही है।
गौरतलब है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह ने भाजपा ज्वाइन की थी। इसके बाद वह सांसद और केंद्रीय मंत्री बने। इनके बाद वर्ष 2015 में यूपी से सेवानिवृत्त डीजीपी बृजलाल ने भी भाजपा से सियासी सफर की शुरुआत की और राज्यसभा सांसद बने। वहीं, वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने वीआरएस लेने के बाद भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और वर्तमान में राज्य सरकार में समाज कल्याण मंत्री हैं।
ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर रहे राजेश्वर सिंह ने भी वीआरएस लेकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और विधायक बने। हालिया लोकसभा चुनाव के दौरान डीजीपी के पद से सेवानिवृत्त हुए विजय कुमार ने भी अपनी पत्नी के साथ भाजपा की सदस्यता ग्रहण करके राजनीतिक सफर का आगाज किया।
रेरा व सूचना आयोग में भी अफसरों का समायोजन
राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त हुए कई आईपीएस अफसरों को दोबारा सिस्टम में लाने की बड़ी पहल भी की। विजिलेंस डायरेक्टर के पद से सेवानिवृत्त भानु प्रताप सिंह को रेरा में सदस्य बनाया गया। इसी तरह डीजी इंटेलिजेंस के पद से सेवानिवृत्त भवेश कुमार सिंह और सेवानिवृत्त डीजीपी आरके विश्वकर्मा को सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर तैनात किया गया। सेवानिवृत्त आईपीएस सुबेश कुमार सिंह, सुधीर कुमार सिंह और गिरजेश कुमार चौधरी को भी सूचना आयोग में सूचना आयुक्त बनाया गया।
दलित वोट बैंक में सेंध की कवायद
भाजपा में दलित अफसरों की वाइल्ड कार्ड इंट्री का असली मकसद दलित वोट बैंक में सेंध माना जा रहा है। उदाहरण के तौर पर बृजलाल और प्रेम प्रकाश लंबे वक्त तक बसपा सरकार में अहम पदों पर रहने के दौरान दलितों को न्याय दिलाने की मुहिम चलाते रहे। दलित वोटरों के बीच उनकी लोकप्रियता को भांपकर ही भाजपा ने उन्हें तत्काल पार्टी में शामिल करने के साथ अहम पदों पर नियुक्त किया।