लखनऊ: गोमती का कहर, चार से पांच फीट गहरे पानी से होकर गुजर रहे लोग, प्रशासन की बेरूखी ने बढ़ाया दर्द

लखनऊ से सटे बख्शी का तालाब इलाके में गोमती अपने रौद्र रूप में दिख रही है। हालांकि पानी का स्तर नीचे उतरा है लेकिन इसके बावजूद समस्याएं कम नहीं हुई हैं।

Lucknow: Gomti's havoc, people passing through four to five feet deep water, administration's indifference inc

इटौंजा क्षेत्र के गांवों में गोमती नदी का जलस्तर कम होने के बाद भी ग्रामीणों को प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं पहुंचा है। ग्रामीणों को मवेशियों के लिए चार से पांच फिट गहरे पानी में जाकर चारा लाना पड़ रहा है। स्कूली बच्चों और बाहर काम करने वाले लोगों को भी पानी से होकर आवागमन करना पड़ रहा है।लासा गांव निवासी देवी ने बताया कि उनका गांव गोमती नदी से महज दो सौ मीटर की दूरी पर बसा है। सबसे पहले गोमती का पानी गांव को चारों तरफ से घेर लेता है। पूरा गांव एक टापू बन जाता है। शौचालय से लेकर रास्ते तक सब जगह पानी है। लासा गांव में पंद्रह ग्रामीणों के घरों और मवेशियों के भूसाघरों में पानी भरा है। आधा दर्जन से अधिक बाढ ग्रस्त गांवों में ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है। दूध का उत्पादन के लिए ग्रामीण भैसों को पालते हैं। पालतू मवेशियों को बांधने की जगह भी नहीं बची है। बाढ़ प्रभावित गांव सुल्तानपुर, बहादुरपुर, लासा, इकड़रिया खुर्द, इकड़रिया कला, हरदा, दुघरा, जमखनवा में महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी हो रही है। गांव में अभी तक कोई स्वास्थ की टीम भी नहीं भेजी गई है।

कहीं उफना रहा पानी, कहीं नलकूप खराब
बीकेटी क्षेत्र में कहीं गोमती उफना रहा है तो कई इलाके ऐसे हैं जहां किसान अपनी फसल बचाने के लिए सरकारी नलकूप सही करवाने के लिए चक्कर काट रहा है। किसानों का कहना है कि बिजली लाइन सही करवाने के लिए कई की फरियाद की गई है ताकि नलकूप चल सके। सिंहामऊ राजकीय नलकूप संख्या 88 पिछले काफी दिनों से खराब है, जिससे लगभग तीन सौ एकड़ धान की रोपाई प्रभावित हो रही है। यहां के किसान ब्रजेश सिंह, रमेश कुमार रावत, सुंदर लाल, मोहन गुप्ता व अन्य अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। महोना में राजकीय नलकूप संख्या 157 भी पिछले 6 माह से से बंद पड़ा है। नगर पंचायत महोना के गोविंदपुरी हार में स्थित राजकीय नलकूप संख्या 157 बिजली का खंभा टूटने के कारण बंद है। किसानों का कहना है उनके फसलें बर्बाद हो गई हैं। अब उन्हें धान की बुवाई की चिंता सता रही है।

नुकसान का आकलन करने नहीं पहुंची टीम, नाराजगी
गोमती नदी का बढ़ा जलस्तर कम होने लगा है। पानी कम होने से किसानों ने राहत की सांस ली है। यह क्रम जारी रहा तो तीन माह में किसान रबी फसल की बुवाई आसानी से कर सकेंगे। दो दिन से ग्रामीण राजस्व टीम का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन शनिवार को वहां कोई नहीं पहुंचा। किसानों का कहना है कि अगर नुकसान का आकलन हो जाएगा तो उन्हें कुछ राहत मिलेगी। उधर, सपा के पूर्व विधायक गोमती यादव ने प्रभावित गांवों में जाकर किसानों से मुलाकात की।

एसडीएम बीकेटी सतीश चंद्र त्रिपाठी ने तीन दिन पहले निर्देशित किया था कि जलस्तर कम होने की शुरुआत के साथ ही राजस्व टीम सुल्तानपुर, बहादुरपुर, लासा, इकड़रिया खुर्द, इकड़रिया कला, हरदा, दुघरा और जमखनवा में गोमती के पानी में डूबी सब्जियों और धान की नर्सरी का आंकलन करेगी। इन गांवों के किसान शनिवार को दोपहर तक इंतजार करते रहे, लेकिन उन्हें निराश होना पड़ा। ग्रामीणों ने बताया कि पानी कम हो रहा है। रविवार तक आवागमन बहाल हो सकेगा। गांव के बाहर मवेशियों के लिए झोपड़ी और भूसा घरों में पानी भरने से नुकसान हो गया है। उधर, पूर्व विधायक गोमती यादव ने जिला उपाध्यक्ष सुनील भदौरिया व पूर्व प्रधान राजकिशोर लोधी समेत अन्य के साथ प्रभावित गांवों का दौरा किया। उन्होने यहां ग्रामीणों से उनकी फसल नुकसान को लेकर बातचीत की।

माधोपुर में जमीन पैमाइश करने पहुंची राजस्व टीम

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इटौंजा क्षेत्र में किसानों के हितों की आवाज उठाने वाले दीपक शुक्ला तिरंगा महाराज ने बताया कि किसानों की डूबी फसल के नुकसान का आंकलन करने की बजाय राजस्व टीम माधोपुर में प्रापर्टी डीलरों की जमीन पैमाइश करने पहुंची थी। जब राजस्व टीम से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि प्रधानों से संपर्क किया जा रहा है। आरोप है कि इटौंजा क्षेत्र में राजस्व निरीक्षक राजेंद्र प्रसाद नुकसान की जानकारी गांवों में जाकर लेने के बजाय ग्राम प्रधानों से फोन पर किसानों के आधार और खतौनी मांग रहे हैं। किसानों ने कैम्प लगाकर फसल नुकसान का आंकलन करने की मांग की।

पानी उतरने पर ही सम्पूर्ण आकलन हो सकेगा
एसडीएम बीकेटी सतीश चन्द्र त्रिपाठी ने बताया कि पानी कुछ कम हुआ है। अभी डूबी फसलों का कुछ हिस्सा ही स्पष्ट हो पा रहा है। जलस्तर थोड़ा और कम होगा तो नुकसान की तस्वीर पूरी साफ हो पाएगी। अभी तुरन्त आंकलन करवाने से सभी किसानों के नुकसान का आंकलन सही ढंग से नहीं हो पाएगा।

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