यूपी की यह सीट सपा-भाजपा के लिए नाक का सवाल बन गई है। सीएम योगी पिछले सात दिन में इस विधानसभा क्षेत्र का दौरा दो बार कर चुके हैं। करीब 25 वर्ष से काबिज सपा ने वर्चस्व बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी।

उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कांटे के मुकाबले वाली सीटों में शुमार है कानपुर की सीसामऊ विधानसभा। जेल में बंद चार बार के सपा विधायक इरफान सोलंकी की विधायकी जाने के बाद इस सीट पर 20 नवंबर को मतदान होगा।
इस सीट पर करीब 25 वर्ष से काबिज सपा ने वर्चस्व बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है तो भाजपा के लिए यह सीट नाक का सवाल बन गई है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महज सात दिन में इस विधानसभा क्षेत्र का दो बार दौरा किया।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव एक जनसभा कर चुके हैं और शनिवार को हुए मुख्यमंत्री के रोड शो के जवाब में रोड शो कर सकते हैं। उधर, सीट पर जीत का आंकलन करने से दिग्गज नेता और विशेषज्ञ भी बचते दिखे। हालांकि 45 फीसदी मुस्लिम वोटर, 30 फीसदी एससी-ओबीसी और 25 फीसदी सामान्य वर्ग वाली इस विधानसभा क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण साफ दिख रहा है।
नसीम सोलंकी सहानुभूति के लहर पर सवारअमर उजाला ने शुक्रवार व शनिवार को इस विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख मार्गों से लेकर गलियों में जाकर सियासी माहौल जानने कोशिश की। एक तस्वीर बिल्कुल साफ दिखी कि इरफान की पत्नी नसीम सोलंकी सहानुभूति के लहर पर सवार हैं। प्रचार के दौरान उनकी आंखों की नमी वोटरों का ध्यान खींच रही है।
सुरेश अवस्थी की छवि युवा व छात्रनेता की
केवल मुस्लिम ही नहीं बल्कि हिंदू बहुल इलाकों में भी टियर इफेक्ट महसूस हुआ। वहीं, भाजपा से तीसरी बार ताल ठोंक रहे सुरेश अवस्थी की छवि युवा व छात्रनेता की है। युवा उनसे जुड़े हैं। इरफान से नाराज तबका सुरेश के साथ खुलकर खड़ा है। मुख्यमंत्री की छवि और कानून-व्यवस्था उनके लिए ट्रंप कार्ड है।
कनपुरिया स्टाइल में लाला शुक्ला बोले- साइकिल गई
शुक्रवार रात लेनिन पार्क के पास एक पान की दुकान पर पहुंचे। योगी के रोड शो को लेकर कनपुरिया स्टाइल में लाला शुक्ला बोले, साइकिल गई। काहे…गुटखा दबाए खड़े दीपू भइया एक शब्द का सवाल दागने के साथ ही बुदबुदाए, योगी-मोदी की घनघोर लहर में भी सीट हाथ नहीं आई थी। जवाब मिला, दूसरा कोना पकड़ो।
इस सीट पर साल 1991 में खिला था कमल
योगी जी का रोड शो गेम फिनिश कर देगा। बता दें कि सीसामऊ सीट पर वर्ष 1991 में कमल खिला था। तब राकेश सोनकर जीते थे। अजमेरी चौराहा चमनगंज में मोहम्मद शकील और मोहम्मद असद बिरयानी खाकर बाहर निकले। उनसे पूछा लेकिन कन्नी काट गए। जोर देने पर धीरे से बोले, उपचुनाव है। खामोशी से काम कीजिए।
चाय पर चर्चा ऐसी कि ठंडा माहौल भी गरमा गया
शनिवार सुबह 80 फीट रोड स्थित बनारसी चाय की दुकान पर अवधेश दुबे, राजेश शर्मा, उदय द्विवेदी, हरीश मतरेजा, पवन गुप्ता, मनोज शुक्ला, बृजेश सेठ और अशोक बाजपेयी की टोली में जाकर बैठ गए। चुनावी रुख के सवाल पर जवाब आया, दोनों के लिए जीने-मरनेे का सवाल है। इस जीत-हार से वर्ष 2027 के चुनाव की रूपरेखा तय होगी। क्या नसीम सोलंकी को सहानुभूति का लाभ मिलेगा।
वर्ष 2007 में भाजपा से चुनाव लड़कर इरफान से हारे हरीश मतरेजा ने कहा, 2007 में इरफान भी सहानुभूति की वजह से जीते थे, क्योंकि उनके विधायक पिता हाजी मुश्ताक सोलंकी का निधन हो गया था। आज इरफान जेल में हैं। तब और अब की सहानुभूति में यही फर्क है। बीच में बात काटते हुए उदय द्विवेदी ने कहा कि इरफान को जेल भेजने के पीछे किसकी साजिश है, सब अच्छे से जानते हैं।
पवन गुप्ता ने टोका, इरफान ने विकास केवल मुस्लिम बहुल इलाकों में कराया। भड़के उदय बोले, अगर ऐसा होता तो चार बार विधायक न बनते। संदीप पासवान ने कहा, इरफान आजतक उनकी दलित बस्ती में नहीं आए। 25 साल से परिवार के पास विधायकी रही लेकिन विकास ढेला भर नहीं हुआ। रही बात इमोशनल लहर की तो सुरेेश भी तीन बार से मैदान में हैं। उनके साथ भी लोग हैं।
मुस्लिम इलाकों में खामोशी की चादर
सपा का प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2017 के चुनाव में योगी और मोदी की लहर के बावजूद जीत हासिल नहीं हुई। मुस्लिम बहुल इलाके में स्थित हुमायूं बाग में नब्ज टटोलने की कोशिश की लेकिन लबों पर छाई खामोशी से जाहिर हो गया कि मतदाता अभी पत्ते खोलने के मूड में नहीं हैं।
धूप सेंक रहे शकील भाई बोले, पहला चुनाव है, जिसमें कोई मुद्दा ही नहीं है। शांतिभंग के नोटिस चस्पा हैं। वोटर निकलने से डर रहे हैं। अशफाक सिद्दीकी ने बात आगे बढ़ाई और बताया कि मुस्लिम बहुल इलाकों में केडीए सीलिंग की ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रहा है। इससे गलत मैसेज जा रहा है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि पहली बार मुस्लिम इलाकों में भाजपा प्रत्याशी खुद आए हैं। संपर्क कर रहे हैं। ये एक अच्छी पहल है। अबरा परवीन बोलीं, सरकारी योजनाएं हमारे पास तक नहीं पहुंचती। विधायक हमारी बात सुनें, इसलिए वोट जरूर डालेंगे।
सीसामऊ विधानसभा सीट एक नजर में
मुस्लिम : 45 फीसदी
सामान्य : 25 फीसदी
एससी : 16 फीसदी
ओबीसी व अन्य : 14 फीसदी
कुल मतदाता : 2.69 लाख
महिला मतदाता : 1.26 लाख
पुरुष मतदाता : 1.43 लाख
बसपा ने वोट काटा तो नुकसान भाजपा का
सीसामऊ विस क्षेत्र में एससी वोट खासी संख्या में हैं। एक-एक वोट की लड़ाई में अगर बसपा ने सेंध लगाई तो भाजपा की चुनौती बढ़ जाएगी। हालांकि पिछले चुनावों पर नजर डालें तो इस सीट पर बसपा का जनाधार लगातार घटा है। बसपा ने इस सीट पर जीत के लिए सोशल इंजीनियरिंग के सारे फॉर्मूले अपनाए।
परिसीमन से पहले वर्ष 2007 के चुनाव में बसपा के अनिल सोनकर वारसी को 18 फीसदी वोट मिले थे। इसके बाद वोट प्रतिशत लगातार गिरता गया। वर्ष 2012 के चुनाव में मोहम्मद वसीक को करीब 12 फीसदी वोट मिले। वर्ष 2017 में नंदलाल कोरी ने 7.7 फीसदी वोट हासिल किए। वर्ष 2022 में ब्राह्मण प्रत्याशी रजनीश तिवारी को टिकट दिया लेकिन उन्हें दो फीसदी वोट भी नहीं मिला।
जीत हार का फासला
वर्ष 2022 में सपा 12,266 वोटों से जीती
वर्ष 2017 में सपा 5,826 वोट से जीती
वर्ष 2012 में सपा 19,663 से सपा जीती
वर्ष 2007 में सपा (तब आर्यनगर विस) 23,203 वोट से जीती
ये हैं उम्मीदवार
सुरेश अवस्थी : भाजपा
नसीम सोलंकी : सपा
वीरेंद्र शुक्ला : बसपा