UP: काशी में एकमुखी शिवलिंग का नया पता, गुजरात का लोथल म्यूजियम; 1200 साल प्राचीन है मूर्ति

Varanasi News: विशेषज्ञों के अनुसार यह खोज वाराणसी क्षेत्र में मध्यकालीन शैव परंपरा, गंगा तटीय सभ्यता तथा प्रतिहार कालीन कला शैली के अध्ययन हेतु एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है।

Ekmukhi Shivling in Kashi has new address Lothal Museum in Gujarat idol is 1200 years old

काशी में मिली दुर्लभ एकमुखी शिवलिंग मूर्ति।

काशी के चौबेपुर में मिली 1200 वर्ष पुरानी गुर्जर-प्रतिहार कालीन एकमुखी शिवलिंग मूर्ति अब गुजरात के लोथल स्थित नेशनल मरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स (एनएमएचसी) के म्यूजियम में दिखेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 20 सितंबर को इस कॉम्पलेक्स का उद्घाटन किया था। 

बलुआ और पत्थर से बनी इस मूर्ति के हस्तांतरण की औपचारिक प्रक्रिया नवंबर के अंत तक पूरी हो सकती है। बीएचयू के जीन विज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे और उनके गांव के लोगों ने इस मूर्ति की खोज डेढ़ महीने पहले की थी। इसके बाद एएसआई और सरकार को पत्र लिखकर इसके संरक्षण की बात कही गई थी। एनएमएचसी के एडवाइजर और चीफ क्यूरेशन कमिटी के चेयरमैन प्रोफेसर वसंत शिंदे ने कहा कि इस मूर्ति को गैलरी संख्या पांच में रखा जाएगा। 

प्रोफेसर चौबे के द्वारा भेजे गए पत्र के जवाब में प्रो. शिंदे ने इसकी स्वीकृति देते हुए लिखा कि मंत्रालय की ओर से आपकी उदार पेशकश के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता हूं। यह अनोखी मूर्ति एनएमएचसी, लोथल की गैलरी 5 में केंद्रीय वस्तु के रूप में प्रदर्शित होगी। वह नवंबर में चौबेपुर गांव आकर औपचारिकताएं पूरी करेंगे।

चल रही है तैयारी

इस मूर्ति में भगवान शिव का एकमात्र मुख उकेरा गया है, जो शांत मुद्रा, जटामुकुट, गोल कुंडल, गले की माला और सूक्ष्म नक्काशी से सजा है। मूर्ति का ऊपरी भाग गोलाकार लिंग रूप में है, जो इसे शैव परंपरा का अनोखा उदाहरण बनाता है। यह खोज दाह संस्कार के दौरान की गई थी, जब यह एक ग्रामीण के खेत में गंगा तट पर मिली। 

डॉ. सचिन तिवारी और डॉ. राकेश तिवारी ने इसे 9वीं-10वीं शताब्दी के गुर्जर-प्रतिहार काल की शैली का बताया, जो काशी-सारनाथ कला परंपरा से प्रेरित है। प्रोफेसर चौबे ने बताया कि इस खोज के बाद स्थल का वैज्ञानिक सर्वेक्षण और संरक्षण कार्य प्रस्तावित है। उन्होंने कहा, “यह मूर्ति न केवल वाराणसी की गंगा तटीय सभ्यता का प्रमाण है, बल्कि मध्यकालीन शैव परंपरा को समझने में महत्वपूर्ण साक्ष्य बनेगी। 

एनएमएचसी में इसका प्रदर्शन इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाएगा।” भारतीय बंदरगाह रेल एवं रोपवे निगम लिमिटेड (आईपीआरसीएल) के तहत विकसित हो रहे एनएमएचसी में यह मूर्ति समुद्री विरासत के संदर्भ में प्रदर्शित की जाएगी, जो प्राचीन भारत की सांस्कृतिक यात्राओं को दर्शाएगी।

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