UP: यहां इस जाति के वोटर हुए निर्णायक… चुप्पी बनी चुनौती, जातीय गोलबंदी पर टिका चुनाव; भाजपा को तगड़ी टक्कर

यूपी की इस सीट पर अनुसूचित जाति के वोटर निर्णायक हैं। मतदाताओं की चुप्पी सभी दलों के लिए चुनौती बन गई है। यहां भाजपा की हैट्रिक लगाने की रणनीति को गठबंधन से तगड़ी चुनौती मिल रही है। चुनाव जातीय गोलबंदी पर टिक गया है।

मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ इलाहाबाद संसदीय सीट के राजनीतिक समीकरण भी पल-पल बदलने लगे हैं। अलग-अलग संस्कृतियों एवं समुदायों को सहारा देने वाली गंगा एवं यमुना नदी के बीच बसे इस क्षेत्र के पथरीले इलाके सियासी हलके में मृग मरिचिका जैसे हालात बना रहे हैं।

ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा इसे समझना राजनीति के पंडितों के लिए भी आसान नहीं रहा गया है। जानकारों के अनुसार जातीय गोलबंदी पर टिके इस चुनाव में अनुसूचित जाति के वोटर निर्णायक होते दिख रहे हैं।

इलाहाबाद सीट पर ब्राह्मण हमेशा से ही राजनीति की दिशा तय करते रहे हैं। यही वजह है कि इस सीट पर अब तक अगड़ी जाति के नेता ही सांसद चुने जाते रहे हैं। इस बार भी हालात कुछ जुदा नहीं दिख रहे और हैट्रिक लगाने की तैयारी में जुटी भाजपा को कांग्रेस के उज्ज्वल रमण सिंह की कड़ी चुनौती मिल रही है।

इलाहाबाद में सवा अठारह लाख से अधिक मतदाता हैं। गंगा और यमुना की पारिस्थितिकी को अच्छी तरह से समझने वाले ब्राह्मणों और मल्लाहों का गठजोड़ पिछले दो चुनावों में भाजपा को काफी रास आया। इलाहाबाद में इन दोनों बिरादरी के छह लाख से अधिक मतदाता हैं और इन्हें भाजपा अपना परंपरागत वोट बैंक मानती रही है। इनके अलावा करीब दो लाख पटेल मतदाताओं को भी भाजपा अपना परंपरागत वोटर मानती रही है। 

पार्टी उम्मीदवार नीरज त्रिपाठी की मजबूत दावेदारी के पीछे इन आठ लाख लाख से अधिक मतदाताओं के झुकाव को ही मुख्य वजह माना जा रहा है लेकिन मेजा से सपा विधायक संदीप पटेल तथा इन तीनों बिरादरी के कई अन्य नेता कांग्रेस के उज्ज्वल के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा बसपा ने भी रमेश पटेल को मैदान में उतारा है। ऐसे में भाजपा इन मतों का बिखराव कितना रोक पाती है देखना होगा।

भाजपा के सामने अनुसूचित जाति के मतदाताओं को अपने पक्ष में रोकने की भी चुनौती होगी। बदलते चुनावी समीकरणों एवं उठापटक के बीच क्षेत्र के तीन लाख अनुसूचित तथा कोल मतदाताओं की चुनाव में निर्णायक भूमिका बन गई है। इन्हें बसपा का परंपरागत वोट बैंक माना जा रहा है लेकिन यहां बसपा के कमजोर होने के बाद अनुसूचित जाति के मतदाताओं का भाजपा की तरफ झुकाव रहा है। विगत चुनाव तो यही तस्वीर दिखाते हैं।

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